Paush Amavasya 2024: पौष अमावस्या का दिन पितरों का आशीर्वाद लेने और उन्हें प्रसन्न करने का है। यदि पितरों के आशीर्वाद से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है तो व्यक्ति अपने जीवन में उन्नति करता है। उसके पास धन, दौलत, संतान और सभी प्रकार की सुख-सुविधाएं हैं।
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस साल 2024 में पौष अमावस्या 11 जनवरी को है। पौष अमावस्या तिथि 10 जनवरी को रात्रि 08:20 बजे से 11 जनवरी को सायं 05:26 बजे तक है। पौष अमावस्या के दिन सुबह स्नान करना चाहिए उसके बाद पितृ दोष से मुक्ति के लिए उपाय करना चाहिए। आइए जानते हैं पौष अमावस्या पर पितृ दोष से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय क्या है?
Paush Amavasya 2024
जो लोग पितृ दोष से पीड़ित हैं उन्हें पौष अमावस्या के दिन स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद पितरों को याद करके उन्हें शुद्ध जल और कुश अर्पित करना चाहिए। इससे पितर संतुष्ट होते हैं और अपनी संतानों को आशीर्वाद देते हैं। पितृ दोष से मुक्ति के लिए पौष अमावस्या के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। फिर उस दीपक के पास बैठकर पितृ सूक्त का पाठ करें।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पितृ-सूक्त का पाठ करने से नाराज पितर शांत होते हैं और उनके जीवन के दुखों का अंत होता है। अमावस्या और पूर्णिमा तिथि पर पितृ-सूक्त का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा पितृ पक्ष के दौरान भी इसका पाठ करना चाहिए। अगर आप पितृ दोष से पीड़ित हैं तो आप इसका पाठ रोजाना कर सकते हैं। पितृ-सूक्तम् का पाठ संस्कृत में लिखा गया है, इसका उच्चारण सही ढंग से करना चाहिए।
Paush Amavasya 2024: पितृ-सूक्तम् पाठ
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥
आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥
ॐ शांति: शांति: शांति: