
राजस्थान के कोटा शहर में लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहें हैं. राजनितिक मंचों और मीडिया में पूरी तरह से फ़ज़ीहत करवाने के बाद भी गहलोत सरकार राज्य में महिला आयोग का गठन नहीं कर सकी.
एक मामला 23 नवंबर का भी हैं जहां 3 महीने की गर्भवती महिलों को घसीट कर थाने ले जाने और उसकी गोद से उसका बच्चा छीनने की हिमाकत खुद कोटा पुलिस ही कर चुकी हैं. ऐसे में कोई महिला इस बात की शियाकत किस इंसान को दर्ज़ करवा सकती हैं?
आपको बता दें की कोटा में महिला आयोग के अध्यक्ष से लेकर सदस्यों तक कुल चार पद खाली पड़ें हैं. 20 अक्टूबर 2015 को बनी महिला आयोग की अध्यक्ष का कार्यकाल 19 अक्टूबर 2018 में ख़त्म हो गया था.
कोटा महिला आयोग की सदस्य डॉ. रीता भार्गव एवं सुषमा कुमावत का कार्यकाल 20 जनवरी 2019 और अरुणा मीणा का कार्यकाल 20 नवंबर 2019 को भले ही खत्म हो गया हो लेकिन राज्य की सरकार ने इन पदों को भरना जरूरी नहीं समझा.
पुलिस रिकॉर्ड की माने तो कोटा में जनवरी 2019 से लेकर 31 मई 2019 तक कुल 2298 बलात्कार के मामले दर्ज़ हो पाए हैं. जिसमे से 1183 मामले अभी भी अनुसंधान में ही पेंडिंग हैं. अगर हम सभी महिला के खिलाफ होने वाले अपराधों की बात करें तो छेड़छाड़ के 3,054, अपहरण एवं व्यपहरण के 2,442 एवं अन्य 490 मामले, 176 बेटियां दहेज की मांग में हत्या के मामले, 76 आत्महत्या करने पर मजबूर करने के मामले, महिला उत्पीडऩ के 7,058 मामले दर्ज़ किये हैं.

महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी बाते करने वाले राहुल गांधी केवल गैर कांग्रेसी राज्यों की तरफ ही देखते हैं. वो अपनी पार्टी द्वारा चलाई जा रही सरकार के जरिये देश को अच्छा उदाहरण नहीं देते. शायद यही कारण हैं की महिला को इन्साफ दिलाने वाले महिला आयोग के गठन न किये जाने पर भी राहुल गांधी के मुंह से एक शब्द नहीं निकलता.