
महाराष्ट्र में इस वक़्त गठबंधन की सरकार है और गठबंधन की सरकार कैसी होती है वो 90 के दशक में भारतवासी अच्छी तरह से देख चुके हैं, अगर ताज़ा उदाहरण चाहिए तो आप कर्णाटक की सरकार तो देखि ही होगी.
गठबंधन की सरकार में विकास और रोज़गार से परे हटके अपनी कुर्सी को बचाने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ती हैं. कोई विधायक नाराज़ न हो इसलिए उसकी मांगे माननी पड़ती हैं फिर चाहे वो मांगे आपको पसंद आए या न आए.
लेकिन क्या हो जब समर्थन देने वाली पार्टी ही आपके सामने ऐसी बात रखते जो आपको पसंद न हो और कुर्सी भी बचानी हो? तो जाहिर है आपको उस बात को मानना पड़ेगा ऐसे में समर्थन देने वाली पार्टी बिना राज्य की जनता के सामने बुरी बने अपना काम करवा सकती हैं.
इसी कड़ी में अब महाराष्ट्र की सरकार ने उन अर्बन नक्सल वादिओं के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया है जिनको नरेंद्र मोदी जी की हत्या करने का प्लान बनाने के चलते गिरफ्तार किया था. अब एनसीपी और कांग्रेस की मांग के चलते शिवसेना ने कहा है की जांच के बाद इन छह आरोपियों को रिहा कर देना चाहिए.
आपको बता दें की यह मामला अभी ख़त्म नहीं हुआ. देश की सुरक्षा एजेंसिया इस मामले की जांच लगातार कर रही और अभी यह मामला कोर्ट में भी है. यानी कोर्ट का फैसला आने से पहले ही महाराष्ट्र की गठबंधन की सरकार ने इन छह अर्बन नक्सल को रिहा करने की मांग शुरू कर दी हैं.
ऐसे में अब अगर कोर्ट का फैसला इन छह आरोपियों के खिलाफ आता है तो लोग शिवसेना पर ही सवाल खड़े करेंगे और कांग्रेस इस मामले से अपना पल्ला झाड़ लेगी. ऐसी में शिवसेना का वोटबैंक टूटेगा जिसका फायदा सभी पार्टियों को थोड़ा-थोड़ा मिलेगा.
इस तरह से अब गठबंधन की सरकार शिवसेना से ऐसे काम करवाने की त्यारी में है, जिससे शिवसेना का वोटबैंक पूरी तरह से बिखर जाये और महाराष्ट्र की राजनीती में शिवसेना हाशिए पर चली जाये. विकास के नाम पर मेट्रो प्रोजेक्ट और बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पहले ही रिव्यु करने चलते ठन्डे बस्ते में डाल दिए गए हैं.
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज का स्टेचू अब बनेगा या फिर नहीं बनेगा इसका भी कुछ पक्का नहीं है. ऐसे में सोचने वाली बात है, इस बार तो शिवसेना जैसे-तैसे करके मुख्यमंत्री बनाने में कामयाब हो गयी लेकिन अगली बार लोगों के सामने किन कार्यों को लेकर वोट मांगने जायेंगे?