
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक सभा को संभोदित करते हुए कहा है की, “संघ का मुख्य मूल्य यह है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है.” इसके साथ ही उन्होंने कहा की संघ को किसी विचारधारा के साथ नहीं बांधा जा सकता और न ही इसे किसी पुस्तक में दर्शाया जा सकता है.
यह समारोह छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के प्रमुख सुनील अम्बेकर की नई किताब के विमोचन का था. जिसमे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी मुख्य मेहमान के रूप में आये हुए थे.
इस किताब के विमोचन के दौरान उन्होंने कहा की, “संघ की विचारधारा के रूप में कुछ भी कहना या वर्णन करना गलत है. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने कभी नहीं कहा कि वे संघ को पूरी तरह से समझ सकते हैं. इतने लंबे समय तक सरसंघचालक होने के बावजूद गुरु जी ने कहा कि मैं शायद संघ को समझने लगा हूं.”
संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने एक सांस में हनुमान, शिवाजी और आरएसएस संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार जी को उदारवादी चेहरे के रूप पेश करते हुए संघ के भीतर असंतोष पनपने के महत्व को उजागर किया.
आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत अपने इस भाषण पर बीजेपी का भी नाम लिया और कहा की, “हमारे यहां मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं. ऐसा जरूरी नहीं है कि आरएसएस से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति का किसी खास मुद्दे पर संघ के समान ही विचार हो. बीजेपी के साथ मतभेद होना आम बात है. लेकिन आरएसएस बहस में नहीं, बल्कि सहमति तक पहुंचने में विश्वास करता है.”

एबीवीपी प्रमुख सुनील अम्बेडकर जी की किताब के बारे में तारीफ करते हुए मोहन भागवत ने कहा की आरएसएस के विचारों को दुनिया भर में फैलाने और बताने का यह ईमानदारी से किया गया काम है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उन किताबों का भी जिक्र किया जिसमे आरएसएस को एक आतंकी संघठन के रूप में दिखाया जाता है उन किताबों के बारे में उन्होंने कहा की, “आरएसएस पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाने में विश्वास नहीं करता, कोई भी हमारे बारे में बोल सकता है. हम भले ही दृष्टिकोण से सहमत हो या ना हों, आरएसएस प्रतिबंध के लिए कभी नहीं कहता.”