
एक बड़ी खबर इस वक़्त महाराष्ट्र से आ रही हैं, चुनावों से ठीक पहले मेट्रो निर्माण कार्य को लेकर आरे कॉलोनी में काटे जा रहें वृक्षों का मुद्दा बनाया गया था. राज्य में पर्यावरण मंत्री खुद शिवसेना का होने के बावजूद, शिवसेना ने इसका आरोप बीजेपी पर मढ़ दिया था.
खैर बाद में बहुत हंगामा हुआ, चुनावों में बीजेपी को नुक्सान भी हुआ. महाराष्ट्र में रोज़-रोज़ सरकार बनाने के दावों के बीच आखिरकार शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस का साथ पाने में कामयाब रही. जिसकी बदौलत शिवसेना का मुख्यमंत्री महाराष्ट्र में बना.
लेकिन अब ख़बर यह है की, महाराष्ट्र में शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की एक स्मारक बनाने जा रही हैं. इस स्मारक के लिए जिस जमीन का प्रस्ताव पेश किया गया हैं. उसपर लगभग 5000 पेड़ लगे हुए हैं. ऐसे में जाहिर है स्मारक पेड़ों के ऊपर तो बनेगी नहीं.
तो सवाल यह है की आरे कॉलोनी में मेट्रो निर्माण कार्य के लिए 50 पेड़ काटे जाने पर बॉलीवुड, मीडिया, बुद्धिजीवी, विपक्ष जो हमला बोल रहा था. वह अब 5000 पेड़ों के काटे जाने पर बिलकुल शांत हैं. तो आरे कॉलोनी का विरोध सच में पेड़ों की कटाई और उससे होने वाले नुक्सान के लिए था या फिर बीजेपी की सरकार गिराने के लिए यह तो अब कोई बुद्धिजीवी ही बता सकता हैं.
औरंगाबाद महानगरपालिका में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन हैं, एक तरफ बीजेपी और दूसरी ओर पर्यावरण प्रेमी दोनों ही पेड़ों की कटाई पर नज़ारे गढ़ाए बैठी हैं. दरअसल शिवसेना सरकार ने महाराष्ट्र में लगभग 2 लाख करोड़ के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स को रोक दिया हैं.

उनक कहना है हम पहले इन प्रोजेक्ट्स की समीक्षा करेंगे, ऐसे में इन निर्माण कार्यों में होने वाली देरी इन प्रोजेक्ट्स की कीमतों को ओर ज्यादा बढ़ा देगा. अगर यह प्रोजेक्ट्स ऐसे ही चलते रहते तो इन प्रोजेक्ट्स से जुड़े मजदूरों का काम भी चलता रहता. अब यह प्रोजेक्ट्स जब तक रिव्यु में हैं तब तक इन प्रोजेक्ट्स से जुड़े मजदूर भी बेरोजगार समझिए.
ऐसे सवाल यह भी उठता है की अगर बाद में दुबारा इन प्रोजेक्ट्स को शुरू कर दिया गया तो होने वाली देरी में जो लागत बढ़ेगी उसकी भरपाई का जिम्मेदार कौन होगा? अगर यह प्रोजेक्ट रोक दिए जाते हैं तो जो निर्माण कार्य आधा-अधूरा हो चूका है उसकी लागत कौन ओर कैसे वसूलेगा?