
आज मुख्य न्यायाधीश (CJI) एस ए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत के सामने नागरिकता संशोधन बिल को हटाने की मांग को लेकर याचिकाकर्ता कांग्रेस के जयराम रमेश, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी, TMC की महुआ मोइत्रा, RJD के मनोज झा, जमीयत उलेमा ए हिंद और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के वकीलों ने इस बिल को असवैंधानिक बताया था.
इन वकीलों की केवल एक ही मांग थी की इस नागरिकता संशोधन बिल को समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया जाये. इसके इलावा असम 1985 के समझौते के खिलाफ भी इस बिल को रद्द करे. वकीलों का दावा था की सुप्रीम कोर्ट के सरबानंद सोनोवाल के फैसले का भी यह बिल उल्लंघन करता है.
इसके बाद अंत में जब बात नहीं बनी तो इन सभी वकीलों ने नागरिकता संशोधन कानून को अंतरर्राष्ट्रीय संधियों का उल्लंघन करने वाला बिल साबित करने की भी घोसित की. हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी वकीलों की सभी दलीलों को मना कर दिया और कहा यह बिल किसी भी प्रकार से किसी भी समझौते या कानून का उल्लंघन नहीं करता.
इसी के साथ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी, आरजेडी, जमीयत उलेमा ए हिंद और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की यह कोशिश भी विफल हो गयी. इस कानून का एक मात्र मकसद है की पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ित हुए गैर मुस्लिम धर्मों के नागरिकों को वापिस भारत में शरण देना, नागरिकता देना, रोज़गार देना और सभी सरकारी सुख सुविधाएँ देना.
CAA पर जो प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं उसके दो कारण हैं।
• कुछ राजनीतिक दल हिंदू-मुस्लिम के बीच भेद बनाना चाहते हैं।
• और दूसरा कारण है, इनके दुष्प्रचार और अफवाहों से देश में भ्रांति खड़ी हुई है।
CAA में नागरिकता देने का प्रावधान है किसी की नागरिकता वापस लेने का नहीं। pic.twitter.com/XRu5nChwNb
— Amit Shah (@AmitShah) December 17, 2019
इस बिल में मुस्लिम शब्द इसलिए नहीं जोड़ा गया क्योंकि ऐसे में पूरा पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के लोग जब कभी भी चाहते भारत आकर नागरिकता ले सकते थे. जब उनको अलग देश दे दिया है, उन्होंने वो इस्लामिक देश बना लिया है फिर उनको लोकतान्त्रिक देश कैसे पसंद आता? क्या वो फिर से नए देश की मांग न करते?