
जामिया मिलिया इस्लामिया के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाते हुए कहा था की सशस्त्र पुलिस ने निहत्थे और निर्दोष छात्रों पर हमला किया, इस कार्यवाही के खिलाफ जांच के आदेश दिए जाए. आपको बता दे यह याचिका वकील महमूद पाशा की तरफ से लगाई गयी थी.
छात्रों को ‘गाइडिंग लाइट’ बताते हुए वकील महमूद पाशा ने कहा की पुरे देश में घेराबंदी जैसा माहौल हैं. हिंसक प्रदर्शन करने के बाद अब वकील महमूद पाशा ने कहा है की शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन के अधिकार की रक्षा करना सुप्रीम कोर्ट का फ़र्ज़ हैं.
इस पर सुप्रीम कोर्ट के सीजीआई बोबडे की बेंच ने सवाल किया था की, “सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है? ऐसी हिंसा विभिन्न हिस्सों में हो रही हैं, जहाँ अलग-अलग सरकारें हैं और अलग-अलग प्रशासन है. क्या सुप्रीम कोर्ट उन सभी के लिए अलग-अलग क़दम उठाए? ये कोई ट्रायल कोर्ट नहीं है, सुप्रीम कोर्ट है. कितनी बसें जलाई गईं?” जलने वाली बसों की संख्या बताने में नाकाम रहे वकील ने कहा की अभी जांच चल रही हैं.
CJI – Won’t FIRs be filed if the students are pelting stones ?
IJ – I’m only seeking relief in the form of measures that can be used to establish peace.#JamiaProtests #CitizenshipAmendmentAct #Jamia
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2019
इसपर मुख्य जस्टिस बोबडे ने कहा की, “आपको फैक्ट्स पता होने चाहिए, क्योंकि यहाँ सुप्रीम कोर्ट में बैठ कर वो फैक्ट्स का पता नहीं लगा सकते. आप लोग सुप्रीम कोर्ट के पास क्यों आए हैं? आप ऐसी अदालत में जाइए जहाँ फैक्ट्स का पता लगाया जा सके और फिर सुनवाई हो. आप हमारे पास क्यों आए हैं?”
उसके आबाद जामिया के छात्रों के पक्ष में एक और वकील आगे आये जिनका नाम है, इंदिरा जयसिंह और इन्होने कहा की हजारों छात्रों के खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज़ कर दी हैं. इसपर फिर जस्टिस बोबडे ने फटकार लगाते हुए कहा की, “अगर छात्र पत्थरबाजी करते हैं तो क्या उनके ख़िलाफ़ एफआईआर नहीं होगी? छात्र अगर इस तरह की हरकत करेंगे तो फिर पुलिस क्या करेगी?”
We are not a trial court. What can we do ?
MP – The Court’s intervention is needed as the situation is aggravating.
CJI – How many buses were burnt ?
MP – Inquiry has to be conducted for this.
— Live Law (@LiveLawIndia) December 17, 2019
जब जयसिंह के पास इस बात का कोई जवाब नहीं बचा तब उन्होंने यूनिवर्सिटी और वीसी की अनुमति के बिना यूनिवर्सिटी में पुलिस की कार्यवाही की बात कही और चोटिल विद्यार्थियों की बात की. इसपर जस्टिस बोबडे और उनकी पीठ ने कहा की आपको हाई कोर्ट में जाकर पहले फैक्ट्स क्लियर करने चाहिए. उसके बाद अगर हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्टि न मिले तभी सुप्रीम कोर्ट में आये.