
एक बड़ी खबर इस वक़्त इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से आ रही है, ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दो दशक पुराना स्टे खत्म कर दिया गया है. इसके ख़त्म होने के साथ ही स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर को लेकर वाराणसी की सिविल जज (सीनियर डिवीजन-फास्ट ट्रैक कोर्ट) सुधा यादव की कोर्ट में सुनवाई शुरू होने जा रही है.
1991 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से पंडित सोमनाथ व्यास और अन्य ने ज्ञानवापी में नए मंदिर निर्माण और हिन्दुवों को पाठ पूजा करने का अधिकार देने के लिए मांग की थी. इस मामले में इन लोगों का कहना था की ज्ञानवापी मस्जिद ज्योतिर्लिंग विश्वेश्वर मंदिर का ही एक हिस्सा है.
आपको बता दें की इस केस की सुनवाई 1998 में हाई कोर्ट के द्वारा स्थगित कर दी गयी थी, अब सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप बाद इस पर फिर से सुनवाई शुरू की गयी हैं. बताया जा रहा है की बाबरी मस्जिद के जैसे पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अर्जी पर भी कोर्ट विचार कर रही हैं.
इस बात का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं की विपक्षी अंजुमन इंतजामिया मसाजिद और सुन्नी वक्फ बोर्ड (लखनऊ) ने इस अर्जी पर अपनी आपत्ति जाहिर कर दी हैं. सिविल कोर्ट ने दिवंगत वादी पंडित सोमनाथ व्यास और डॉ. रामरंग शर्मा की जगह अब पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल) विजय शंकर रस्तोगी को वादमित्र नियुक्ति कर दी हैं.
इसी के चलते अपना पक्ष मजबूत करते हुए विजय शंकर ने कोर्ट में लिखित रूप से कहा है की कथित विवादित ज्ञानवापी परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी उसी स्थान पर मजूद हैं. उन्होंने यह भी दावा किया है की 15 अगस्त 1947 को भी विवादित परिसर मंदिर का ही हिस्सा था.

इसलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) द्वारा वादमित्र ने भवन की बाहरी और अंदरूनी दीवारों, गुंबदों, तहखाने आदि का सर्वेक्षण कराना बहुत जरूरी है. इस सर्वेक्षण के बाद शायद ही विपक्ष के पास कुछ कहने के लिए बचेगा और शायद यही कारण हैं की विपक्ष इस सर्वेक्षण के विरोध में खड़ा हैं.