
शाहरुख़ खान की फिल्म “मैं हूं ना” किसे याद नहीं होगी, इस फिल्म को लगभग हर एक भारतवासी ने कम से कम एक बार जरूर देखा होगा. अगर नहीं तो सोशल मीडिया पर “सबकी माँ नहीं होती लक्ष्मण” पर बने मेमे तो जरूर देखें होंगे.
खैर अब इसपर एक विवाद खड़ा हो गया है और विवाद भी ऐसे वक़्त पर खड़ा हुआ है, जब देश भर में लोग बॉलीवुड और उससे जुड़े लोगों के प्रति अपना विरोध इस प्रकार से जाहिर करते हैं की उस व्यक्ति की आने वाली कई फ़िल्में फ्लॉप हो जाती हैं. सबसे पहला उदाहरण इसका खुद शाहरुख़ खान ही हैं, जिन्होंने अब तो फिल्मों में अभिनय करना ही छोड़ दिया हैं.
आपको बता दें की यह विवाद फराह खान जो की शाहरुख़ खान की बहुत अच्छी दोस्त हैं और ‘मैं हूं ना’ की निर्देशक भी रही हैं. उन्होंने एक पोडकास्ट ‘पिक्चर के पीछे’ की बात करते हुए कहा की, “मैंने ‘मैं हूं ना’ फिल्म बनाते समय यह बात सुनिश्चित की थी कि फिल्म का मुख्य विलेन मुसलमान आतंकवादी न हो. वो एकदम भारतीय हो.”
यही नहीं इसके इलावा मुख्य विलेन के ख़ास आदमी जिसका नाम खान होता हैं, उसके किरदार को लेकर उन्होंने कहा की, “विलेन का दायां हाथ जिस व्यक्ति को चुना उसका नाम खान था. इस व्यक्ति को अहसास होता है कि उसे पूरी जिंदगी गलत दिशा में चलने के लिए प्रेरित किया गया था और इस वजह से उसने अपने देश की जगह आतंकवाद को चुना.”
2004 में आयी यह फिल्म 84 करोड़ का कलेक्शन करने में कामयाब रही थी. इस फिल्म में शाहरुख़ खान के साथ साथ जायद खान, अमृता राव, सुष्मिता सेन और सुनील शेट्टी भी मुख्य किरदारों में नज़र आये थे.
लेकिन फिल्म को लेकर उनका यह बयान बॉलीवुड की मानसिकता को दर्शाता हैं, जहाँ किसी भी मुस्लिम व्यक्ति को फ़कीर, मौलवी, मदद करने वाला, अल्लाह को मानने वाला, अत्याचारों से परेशान होकर अपराध की दुनिया में जाने वाला. वहीँ हिन्दू की बात करें तो आतंकवादी, ठोंगी बाबा, चोर, लुटेरा, बेवजह लोगों को मारने वाला दिखाया जाता हैं.

ऐसे में यह कहना मुश्किल नहीं हैं की एक दिन बॉलीवुड अज़मल कसाब के ऊपर एक फिल्म बनाये और उसकी छवि मात्र एक शरारती बच्चे की दिखा दी जाये. खैर बॉलीवुड की यह मानसिकता केवल फिल्मों तक सिमित नहीं हैं, बॉलीवुड की कई महान हस्तियों ने आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु की फांसी की सज़ा माफ करने के लिए राष्ट्रपति को भी पत्र लिखा था.