
महाराष्ट्र देश का ऐसा राज्य बन चूका है, जहां चुनाव ख़त्म हो चुके हैं. सरकार भी बन चुकी हैं, लेकिन पार्टियां अभी भी एक दूसरे से असंतुष्ट हैं. यही कारण हैं की, 28 नवंबर को सभी पार्टी को दो-दो मंत्री पद मिलने के बावजूद अभी तक उनके विभागों का आगे बंटवारा नहीं हो सका.
महाराष्ट्र में अभी मात्र 6 मंत्री हैं और एक मुख्यमंत्री, उसमे भी मंत्रियों के विभागों का आगे विस्तार नहीं हो सका. इसका मुख्य कारण सभी पार्टियों की निजी महत्वकांक्षाएं हैं. इसी बीच बताया जा रहा है की नागरिकता संशोधन बिल पर भी शिवसेना दो फाड़ हो चुकी हैं.
एक तरफ आलाकमान कह रही है की इस बिल का विरोध करना चाहिए जिससे एनसीपी और कांग्रेस नाराज़ न हों, दूसरी और उसके विधायक कह रहे हैं की इस बिल का समर्थन करना चाहिए जिससे हमारे मूल सपोटर्स निराश न हों.
इसी बीच शिवसेना के उद्धव ठाकरे में एनसीपी और कांग्रेस को चौंकाते हुए लोकसभा में इस बिल का समर्थन कर दिया, लेकिन जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस बारे में शिवसेना को लेकर टिप्पणी की तो शिवसेना ने ब्यान दिया हम राज्यसभा में इस बिल का विरोध करेंगे.
Maharashtra Former CM Devendra Fadnavis: Winter session of the Assembly has been called for only 6 days. Neither portfolio allocation nor expansion of ministry has taken place since govt formation. It (session) is being held as formality as no body knows who is answerable. pic.twitter.com/1oQIxlEzA7
— ANI (@ANI) December 10, 2019
वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ब्यान दिया हैं की, “विधानसभा का शीत सत्र केवल छह दिनों के लिए बुलाया गया है. अब तक न तो मंत्रियों को विभाग बॉंटे गए हैं और न कैबिनेट का विस्तार किया गया है. यह सत्र केवल परंपरा के निर्वाह के लिए बुलाया गया है, क्योंकि किसी को पता नहीं है कि इस हालत के लिए जवाबदेह कौन है.”
Former Chief Minister of Maharashtra & Shiv Sena leader, Manohar Joshi: In my opinion, it will be better if BJP & Shiv Sena stay together. But both the parties don't want it at present. pic.twitter.com/fNtNRLIQF0
— ANI (@ANI) December 10, 2019
अब क्योंकि शिवसेना को लेकर पुरे देश में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर थू-थू हो रही हैं. ऐसे में शिवसेना के ही दिग्गज नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहें मनोहर जोशी जी का कहना है की, “मेरी राय में यह ज्यादा अच्छा होता कि शिवसेना और भाजपा साथ रहते. लेकिन दोनों पार्टियॉं फिलहाल ऐसा नहीं चाहती.”
Asaduddin Owaisi on Shiv Sena supported #CitizenshipAmendmentBill2019 in Lok Sabha: This is 'Bhangra politics'. They write 'secular', in common minimum programme, this bill is against secularism and Article 14. It is politics of opportunism. pic.twitter.com/3H2V95etB0
— ANI (@ANI) December 10, 2019
आपको बता दें की असदुद्दीन ओवैसी ने भी शिवसेना के नागरिकता संशोधन बिल को लेकर स्टैंड पर ब्यान दिया है की, “कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में महा विकास अघाड़ी सरकार ‘सेकुलर’ है. ऐसे में उस बिल का समर्थन जो धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है, अवसरवाद की राजनीति से ज्यादा कुछ नहीं है.”

शिवसेना, जेडीएस और कांग्रेस के गठबंधन का हाल कर्णाटक के उपचुनाव में देख चुकी हैं, जहां उपचुनावों में दुबारा यह गठबंधन जीत जाता तो बीजेपी के हाथ से कर्नाटक चला जाता, लेकिन बीजेपी ने लगभग क्लीन स्वीप करते हुए कर्णाटक में बहुमत की सरकार बना ली. ऐसे ही हालात अगर महाराष्ट्र में भी हुए तो क्या होगा? इसलिए शायद अब शिवसेना अपने मूल वोटरों को भी नाराज़ नहीं करना चाहती और सत्ता का सुख भी नहीं छोड़ना चाहती.
यही कारण हैं की नागरिकता संशोधन बिल जैसे गंभीर मुद्दे पर भी शिवसेना पेंडुलम की तरह राजनीती करने पर मजबूर हैं, लोकसभा में समर्थन करो और राज्यसभा में नहीं. ऐसे में अगर फिर भी बीजेपी इस बिल को राज्यसभा में शिवसेना के बिना पास करवा लेती है तो शिवसेना के मूल वोटर्स बीजेपी की तरफ आ जाएंगे और अगर बिल पास नहीं हुआ तो बीजेपी शिवसेना के इस पेंडुलम स्टैंड का इस्तेमाल महाराष्ट्र के चुनावों में एक हथ्यार के रूप में करेगी.
इसलिए दोनों ही स्थिति में फायदा बीजेपी को ही होगा, बस एक जगह पर न्यूट्रल हो सकता है अगर शिवसेना राज्यसभा में भी बीजेपी का साथ दे, लेकिन फिर एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना का गठबंधन बचेगा या नहीं इसके बारे में कहना थोड़ा मुश्किल हैं.