
उद्योगपति और फिलेनथ्रोपिस्ट रतन टाटा के साथ कौन इंसान होगा जो काम करना नहीं चाहेगा. लेकिन अगर आपको पता चले की रतन टाटा ही आपके साथ काम करना चाहते है तो आपको कैसा लगेगा? आज हम ऐसे ही एक लड़के की कहानी बताने जा रहें हैं.
यह कहानी है 27 साल के शांतनु नायडू की जिसे खुद रतन टाटा ने फ़ोन करके कहा है की क्या तुम मेरे असिस्टेंट बनना चाहोगे? यह कहानी खुद शांतनु नायडू ने फेसबुक के एक पेज ‘ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे’ में शेयर की है जिसको लाखों लोगों द्वारा अब तक देखा जा चूका है.
बुधवार के दिन शेयर हुई इस कहानी को 26 हजार लोगो द्वारा पसंद किया गया है, 1200 लोगों द्वारा टिप्पणी की गयी और लगभग 2600 लोगो द्वारा साझा किया गया है. शांतनु बताते हैं की 2014 में पहली बार उनकी मुलाक़ात रतन टाटा से हुई थी.
शांतनु ने पेज को दिए इंटरव्यू में बताया है की, पांच साल पहले एक सड़क हादसे के दौरान मैंने कुत्ते को मरते हुए देखा था. मैं इस बात से बहुत ही ज्यादा परेशान हो गया था, कुत्तों के लिए मुझे कुछ करने का आईडिया आया. उन्होंने कहा की आईडिया यह था की ज्यादा से ज्यादा कुत्तों के गले में रिफ्लेक्टर वाले पट्टे लगाए जायें.
रिफ्लेक्टर वाले पट्टों की वजह से वाहन चालक को आसानी से पता चल सकता था की आगे कोई जानवर मजूद है और वो अपनी गाडी की रफ़्तार को धीमा कर सकता था. इस काम की तब इतनी चर्चा हुई थी की टाटा ग्रुप ऑफ कंपनीज के ‘न्यूजलेटर’ में भी शांतनु की स्टोरी छपी थी.
शांतु इस बारे में कहते हैं की, “उसी समय मेरे पिता ने मुझे कहा कि मैं रतन टाटा को एक चिट्ठी लिखूं, क्योंकि उन्हें भी कुत्तों से बहुत प्यार है. हालांकि, शुरुआत में मुझे थोड़ी झिझक हुई. लेकिन फिर मैंने चिट्ठी लिखी. दो महीने बाद मुझे चिट्ठी का जवाब मिला. खुद रतन टाटा ने मुझे मिलने बुलाया था. मेरे लिए इस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था.”
कुछ दिनों बाद मुंबई के ऑफिस में रतन टाटा की मुलाक़ात शांतनु से हुई, बस फिर क्या था अब शांतनु की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आने वाला था. इस मीटिंग में तय हुआ की रतन टाटा शांतनु के भविष्य के किसी बिज़नेस में इन्वेस्ट करेंगे, इसके इलावा शांतनु भी टाटा ग्रुप के साथ मिलकर काम करेंगे. इस मुलाकात के बाद शांतनु विदेश में अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए चले गए, इस वादे के साथ की वह पढ़ाई पूरी करके भारत में आकर ही आगे काम करेंगे.
शांतनु कहते हैं की, “मैं जैसे ही भारत लौटा, मुझे उनका फोन आया. उन्होंने मुझसे कहा- मुझे ऑफिस में बहुत सारा काम करवाना है. क्या तुम मेरे असिस्टेंट बनोगे? मुझे अभी भी कई बार यकीन नहीं होता कि मैं अपने सपने को जी रहा हूं. मेरी उम्र के लोग अच्छे दोस्त और गुरु की तलाश में कितना कुछ नहीं झेलते. मैं खुशनसीब हूं मुझे यह सब मिला है. रतन टाटा किसी सुपरह्यूमन से कम नहीं हैं.”

यह थी कहानी शांतनु नायडू की जिन्होंने इंसानियत का इतना अच्छा उदाहरण दिया और खुद को पढ़ लिखकर इतना काबिल बनाया की आज वह फिलहाल रतन टाटा के असिस्टेंट है. वह कुछ सालों बाद अपना खुद का बिज़नेस शुरू करेंगे जिसमे रतन टाटा खुद इन्वेस्ट करेंगे. इसके इलावा कुत्तों के गले पर पट्टे लगाने का काम अब बहुत तेजी से हो रहा है उनके पास कई समाजसेवी सदस्यों की टीम है, जो लगातार बढ़ रही है.